श्री हरि को प्राप्त करने के दो मार्ग हे, प्रेम और विश्वास- आचार्य जैमिन जी 
छायन राणापुर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के समापन दिवस की कथा में आचार्य जी ने कहा की जब तक भगवान से प्रेम और भगवान में पूर्ण विश्वास नहीं होगा तब तक भक्ति सफल नहीं होती । “भवानी शंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ”। साथ ही में भागवत कथा के चलते सप्तम दिवस की कथा में सुदामा चरित्र , शिवजी का शंकर मोचन , भृगु ऋषि द्वारा त्रिदेवों को परीक्षा , यदु वंश को ऋषि का शाप , श्रीकृष्ण उद्धव संवाद अंतर्गत अवधूत उपाख्यान , यदु वंश का संहार , श्री हरि का स्वधाम गमन, कलियुग के धर्म का निरूपण , शुकदेवजी का परीक्षित को अंतिम उपदेश , कलियुग के प्रभाव से बचने का मढ़ नाम संकीर्तन, परीक्षित का मोक्ष , जन्मेजय का सर्पसत्र की कथा ,

मार्कण्डेय को भगवान की माया का दर्शन एवं श्रीमद् भागवत महापुराण की संक्षेप विषय सूची की कथा की गई । श्रीमद् भागवत महा पुराण भगवान श्री हरि का ही वांगमय स्वरूप हे, जब उद्धव जी ने भगवान के स्वधाम गमन के समय भगवान श्री से पूछा की आपके जाने से पृथ्वी पर कलयुग का प्रभाव बढ़ जाएगा आप के भक्त इस घोर कलियुग से कैसे बच पाएंगे तब भगवान ने कहा की में मेरा अंश श्रीमद् भागवत में छोड़ कर जा रहा हूँ । जब भी कलियुग का प्रभाव बढ़ेगा , लोग अधर्म की और बढ़ेंगे तब भगवान के भक्तों के लिए श्रीमद् भागवत महा साधन की तरह उनका उधार करेगा । आचार्य जी ने यह भी बताया कि जिसने श्रीमद् भागवत की कथा भी सुनी उसने अपनी माँ के गर्भ से जन्म लेकर अपनी माँ को व्यर्थ ही कष्ट दिया ही। इस लिए कलियुग में भागवत भगवान की भक्ति का उत्तम मार्ग हे । इस मार्ग पर चलने से मनुष्य का कल्याण एवं उद्धार होगा । जीवन को कैसे जीना चाहिए , मनुष्य शरीर में रह कर कैसे भक्ति करे , गृहस्थी को किस प्रकार की भक्ति करनी चाहिए , सद्व्रत का पालन कैसे करे , काम , क्रोध , लोभ , मोह को चित्त में से कैसे हटाए वगेरह मनुष्यों के जीवन में हो रहे परिवर्तन का कारण एवं मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या ही इत्यादि चर्चा आज की कथा में हुई ।