थांदला से एक आत्मा ओर संयम पथ पर अग्रसर होने को आतुर - ललित भंसाली धन वैभव को छोड़ लेंगें दीक्षा
18 मार्च को प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनिजी को परिजन सौंपेंगे आज्ञा पत्रथांदला। संसार में जीवन चलाने के लिए अनेक संघर्ष करना पड़ते है, फिर जिनके पास धन वैभव है उन्हें भी अधिक विलासिता की लालसा रहती है ऐसे में विरली आत्मा होती है जो करोड़ो की ऐश्वर्य भरी जिंदगी को पल भर में छोड़ कर अदृश्य दिव्य सुख की तलाश में निकल जाती है। उनके लिए तो तीर्थंकरों की वाणी ही शंका से रहित है तो गुरु वचन ही सत्य वचन है। उन्ही विरली आत्माओं में से एक है ललित भंसाली। थांदला के प्रतिष्ठित सुंदरलाल - तारादेवी भंसाली के अंतिम पुत्र थांदला श्रीसंघ अध्यक्ष भरत भंसाली व समाजसेवी अनिल भंसाली के लघु भ्राता के रूप में ललित का बचपन बड़े ही लाड़-प्यार व परम वैभव के साथ गुजरा। ललित ने पढ़ाई के साथ सामाजिक क्षेत्र में भी अनेक समाजसेवी संगठनों के साथ जुड़कर जनता के सुख-दुःख में सहभागिता की तो व्यावसायिक क्षेत्रों में लेन-देन में पारदर्शिता के साथ प्रामाणिक भूमि व्यापारी के रूप में उनके कार्यों ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के सकुशल निर्वहन की अमिट छाप अंकित की है। ऐसे में उन्हें जीवन संगिनी के रूप में बड़वाह के उम्दा कलाकार घराने से संध्या का साथ मिला जिनके साथ समर्पण भाव को नकारा नही जा सकता।ललित व संध्या ने एक दुसरे का सांसरिक पक्ष में तो साथ दिया ही वही आध्यात्मिक यात्रा में भी एक दूसरे के सहयोगी बने। ललित बताते है कि जब उनकी धर्म सहायिका गुरुभगवंतों से धार्मिक ज्ञान अर्जित कर घर आती थी व उसकी अनुप्रेक्षा करती थी ऐसे में उन दिनों वे एक कॉलोनी के प्लॉट का नक्शा बनाने में व्यस्त थे ऐसे में उनके सामने भगवान द्वारा लोक का स्वरूप जो दिखाया व समझाया गया उसे देखते व समझते उन्हें आध्यात्म की रुचि जगी।
ललित के विकास यात्रा में लोक स्वरूप का महा योगदान समझने वाला है जिस लोक में आज का मानव जिंदगी की जद्दोजेहद में उलझ रहा है वही उनके उत्थान का मार्ग प्रशस्त करने में सहायक सिद्ध हुई है। भंसाली परिवार आने वाली 18 मार्च को धर्मदास गण के नायक जिन शासन गौरव पूज्य श्री उमेशमुनिजी "अणु" के अंतेवासी शिष्य बुद्धपुत्र प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनिजी के कर कमलों में मुमुक्षु ललित भंसाली का आज्ञापत्र सौंपेंगें। उनके भाव को पुष्ट करने में भंसाली परिवार खासकर उनकी धर्म सहायिका का विशेष योगदान रहा है ऐसे में उनके आज्ञापत्र की पारिवारिक स्वीकृति से जन चर्चाओं का वातावरण निर्मित हो गया है। हर कोई जेनेत्तर बंधुओं में इसे आश्चर्यकारी घटना के रुप में देखा जा रहा है कि कोई कैसे इतनी धन-संपत्ति वैभव भरें वातावरण का छोड़कर दीक्षा ले सकता है तो जैन श्रावक-श्राविकाओं में उनके संयम अनुमोदना की प्रसंशा हो रही है। जीवदया अभियान व धर्मदास गण परिषद के अनेक सदस्यों द्वारा उनके व उनके परिवार के सर्वस्व क्षेत्रों में योगदान को न भुलाए जाने वालें स्टोन कहे जा रहे है तो ललित भाई के वैराग्य की मुक्त कंठ प्रसंशा कर रहे है। उनके वैराग्य में निःसन्देह सबसे बड़ा योगदान उनकी धर्म सहायिका का है ऐसे में आज से ही दोनों के पथ भले ही अलग कहे जा रहे हो लेकिन भावों में दोनों के ही निर्मलता का वास है ऐसे में दोनों अलग-अलग कश्ती में भले ही सवार हो पर एक ही मंजिल के मुसाफिर माने जा सकते हैं। संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने बताया कि छोटा काशी कहे जाने वाली धर्म नगरी थांदला से एक ओर रत्न आत्म कल्याण के मार्ग पर चलकर जिन शासन की धर्म प्रभावना को अग्रसर है उन्हें कोटिशः प्रणाम। संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने बताया कि आज कांतिलाल, धर्मेश, चिराग, अनुदीप छाजेड़ परिवार द्वारा वर्षीतप आराधकों को पारणा करवाया गया ऐसे में उनका पहला वैराग्य वनोला भी हुआ जिसमें उनकी उपस्थिति ने सभी तपस्वियों को भाव विभोर कर दिया। जय-जयकार दीक्षार्थी की जयकारों से महावीर भवन गुंजायमान हो गया व हर कोई दिल से उन्हें शुभकामनाएं देते हुए कहा रहा था कि आपको गुरूवर व सिद्ध प्रभु की अनंत कृपा मिलती रहे व संयम पथ आपको शीघ्र अनन्त सुख प्रदान करें।

